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Monday, November 24, 2025
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मेरठ शहर की हवा में एक नया खतरा ले रहा जन्म; ‘ह्यूमिड स्मॉग सिंड्रोम’ का शिकार हो रहे शहरवासी, बढ़ रही मरीजों की संख्या

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  • चिकित्सक दे रहे बचने की सलाह, सांस फूलने, खांसी और दमा के दौरे वाले मरीज तेजी से बढ़ रहे।

शारदा रिपोर्टर मेरठ। सर्दी की शुरूआत के साथ शहर की हवा में एक नया खतरा जन्म ले चुका है। प्रदूषण और नमी मिलकर लोगों को ह्यूमिड स्मॉग सिंड्रोम का शिकार बना रहे हैं। पल्मोनरी एक्सपर्ट्स का कहना है कि, ये हवा में छिपा ऐसा खतरा है, जो आंखों से दिखता नहीं, पर सीधे फेफड़ों की नलियों में जाकर उन्हें ब्लॉक कर दे रहा है। इस कारण से सांस फूलने, खांसी और दमा के दौरे वाले मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। बीते एक हफ्ते में सांस के मरीजों में 30 प्रतिशत तक का इजाफा देखा गया है। मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल की भी यही स्थिति है।

 

 

 

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि हवा में मौजूद धूल, धुआं और टॉक्सिक केमिकल्स, स्मॉग और रात में तापमान गिरते ही हवा में बढ़ती नमी दोनों मिलकर चिपचिपे भारी कण बनाते हैं। ये कण सांस के साथ नाक के फिल्टर को बायपास कर सीधे फेफड़ों की गहराई में पहुंच जाते हैं और वहां सूजन और ब्लॉकेज बना देते हैं। डॉक्टर्स कहते हैं कि सबसे खतरनाक बात ये है कि इसके लक्षण अचानक आते हैं और तेजी से बिगड़ते हैं।

पुराने मरीजों पर अधिक खतरा: डॉक्टर्स बताते हैं कि, दमा और सीओपीडी के मरीज इसके सबसे अधिक शिकार हो रहे हैं। बच्चे, खासकर स्कूल जाने वाले, मॉर्निंग वॉक और जिम जाने वाले, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं पहले से किसी एलर्जी वाले लोगों पर भी इसका असर देखा जा रहा है।
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि सुबह-सुबह हवा अधिक जानलेवा रहती है। सुबह के चार बजे से नौ बजे तक हवा भारी होती है, प्रदूषण जमीन के नजदीक जम जाता है। इसके चलते हर सांस के साथ जहर अंदर जाता है फिट और हेल्दी लोगों पर भी इसका असर दिखाई दे रहा है।

बदला हुआ पैटर्न, डॉक्टर हैरान

डॉक्टर्स का कहना है कि 20-30 फीसदी मरीज पहली बार सांस की दिक्कत लेकर आ रहे हैं। पुरानी दवाएं भी पहले जैसा असर नहीं कर रहीं हैं। वहीं इनहेलर लेने वालों में भी अटैक ज्यादा तेज दिखाई दे रहे हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि यह पैटर्न पारंपरिक अस्थमा से बिल्कुल अलग है।

ये मिल रहे लक्षण

बाहर निकलते ही सांस तेज होना
सीने में भारीपन या जकड़न
सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आंख-नाक में जलन
बिना खांसी के भी दम घुटना

ये है खतरा

लापरवाही से फेफड़ों को स्थायी नुकसान
बार-बार सूजन होने से दमा स्थायी रूप ले सकता है
सांस की नलियां तंग हो सकती हैं
आॅक्सीजन की कमी से दिल पर भी असर

ऐसे करें बचाव

एन 95 मास्क पहनकर ही बाहर निकलें
सुबह आउटडोर एक्सरसाइज बंद करें, घर पर योग करें
एक्यूआई चेक कर ही यात्रा/आउटिंग प्लान करें
घरों में एयर प्यूरीफिकेशन पर ध्यान दें
डॉक्टर की दवाएं नियमित लें
फैब्रिक या डबल लेयर मास्क प्रदूषण नहीं रोकते, इनका प्रयोग कम करें
धूलझ्रधुआं वाले क्षेत्रों से दूर रहें

सांस के मरीजों की स्वास्थ्य स्थिति प्रदूषण के समय सबसे ज्यादा बिगड़ती है। शरीर से टॉक्सिन निकालने की क्षमता कम होने के कारण हवा में मौजूद बेहद महीन कण खून और फेफड़ों दोनों पर वार करते हैं। यह सांस लेने में बाधा और आॅक्सीजन की कमी पैदा करता है। – डॉ. वीरोत्तम तोमर, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट

बदले मौसम के साथ भले ही हवा साफ दिख रही है, पर इसके अंदर मिला जहर सांसों पर संकट खड़ा कर रहा है। आने वाले समय में ह्यूमिड स्मॉग सिंड्रोम बड़ी एयर इमरजेंसी बन सकता है। -डॉ। वीके बिंद्रा, सीनियर फिजिशियन

प्रदूषण ने सांस के मरीजों के लिए दोहरा खतरा पैदा कर दिया है। उनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले ही कम होती है, ऊपर से स्मॉग और नमी के कारण फेफड़ों की सूजन तेजी से बढ़ रही है। कई मरीज जिन्हें पहले कभी सांस की शिकायत नहीं थी, आज अचानक गंभीर स्थिति में अस्पताल पहुंच रहे हैं। – डॉ. ऋषभ अग्रवाल, सीनियर पल्मोनोलॉजिस्ट

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