- “रील का रौब, अपराध का फैशन: समाज, सोशल मीडिया और युवा पीढ़ी की हार”

एडवोकेट आदेश प्रधान | आज के समय में जब देश शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा और तकनीकी में वैश्विक स्तर पर अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर देश की युवा पीढ़ी का एक बड़ा तबका सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में अपराध को ग्लैमर और बदमाशी को पहचान का ज़रिया समझ रहा है। इस डिजिटल युग में जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने हर किसी को अपनी बात रखने का मंच दिया है, वहीं इस स्वतंत्रता का विकृत रूप अब हमारी आंखों के सामने एक भयावह यथार्थ बनकर उभर रहा है। सोशल मीडिया अब केवल संवाद और मनोरंजन का माध्यम नहीं रह गया, यह आज की युवा पीढ़ी का सबसे शक्तिशाली गुरु, दोस्त और प्रेरणा बन चुका है। लेकिन जब यह प्रेरणा ही अपराध की ओर ले जाने लगे तो फिर समाज का दिशा भ्रमित होना तय है।
आज यह कोई छुपी हुई बात नहीं रह गई है कि सोशल मीडिया पर रोज़ाना हजारों की संख्या में ऐसे वीडियो पोस्ट हो रहे हैं जिसमें युवा लड़के खुलेआम हथियार लहरा रहे हैं, नशे में झूमते हुए कानून और पुलिस को चुनौती दे रहे हैं, और रील्स के ज़रिए अपने-अपने गैंग या खुद को ब्रांड के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। ये दृश्य अब दुर्लभ नहीं, बल्कि आम हो चुके हैं। पहले जो बाते अपराधी गुपचुप करते थे, आज वह इंस्टाग्राम पर म्यूजिक के साथ सार्वजनिक रूप से शेयर की जाती हैं। कई वीडियो में अपराधी पिस्तौल से फायर करते हुए दिखते हैं, कुछ में ड्रग्स और शराब के साथ हथियारों का प्रदर्शन किया जाता है, और इन सबको इस तरह पेश किया जाता है जैसे कोई फिल्मी नायक कोई स्टंट कर रहा हो। यह सब देखकर समाज का एक बड़ा तबका, विशेषकर 14 से 25 वर्ष के बीच के किशोर और युवा, इस आभासी दुनिया को अपनी असली दुनिया मानने लगते हैं।