Wednesday, October 15, 2025
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माँ बगलामुखी धाम में मनाया गया माता धूमावती प्राकट्य दिवस

शारदा रिपोर्टर मेरठ।  मां बगलामुखी धाम में माता धूमावती प्राकट्य दिवस: तंत्र साधना की रहस्यमयी महाविद्या का महापर्व मनाया गया।
आज ज्येष्ठ मास की अष्टमी तिथि पर माता धूमावती प्राकट्य दिवस श्रद्धा, तंत्र-ज्ञान और आध्यात्मिक चेतना के अद्वितीय संगम के रूप में मनाया जा रहा है। यह दिन उन साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो इस अत्यंत गोपनीय महाविद्या की आराधना में लीन रहते हैं।

आचार्य प्रदीप गोस्वामी, माता बगलामुखी ब्रह्मास्त्र महाविद्या धाम (श्री दक्षिणेश्वरी काली पीठ, प्राचीन वन खंडेश्वर महादेव मंदिर, मेरठ) से संबद्ध साधक, इस विशेष अवसर पर बताते हैं कि माता धूमावती को अक्सर गलत समझा गया है। उन्हें केवल दरिद्रता की देवी मानना या उनके विकराल स्वरूप से भयभीत होना गहरी अज्ञानता है।

धूमावती: शक्ति का सर्वोच्च रूप

तंत्र शास्त्र के अनुसार, माता धूमावती कोई साधारण देवी नहीं, बल्कि आदिशक्ति का वह स्वरूप हैं जो स्वयं महाप्रलयकाल में समस्त देवताओं के साथ रुद्र को भी अपने भीतर समाहित कर लेती हैं। वे “एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा” की प्रतीक हैं – यानी यह सम्पूर्ण सृष्टि उन्हीं से है और उन्हीं में विलीन हो जाती है। उनका स्वरूप न तो भौतिक सुख-साधनों से प्रसन्न होता है और न ही राजसी भोगों से। वे वैराग्य, तात्विक शक्ति और ब्रह्मज्ञान का अद्वितीय प्रतीक हैं। यही कारण है कि उनका पूजन किसी भी राजसी या भौतिक स्थान जैसे कि घर या मंदिरों में वर्जित माना गया है।

शमशान  साधना और रहस्यमयी तांत्रिक उपासना

धूमावती की उपासना एकांत और गुप्त स्थलों—जैसे नदी किनारे, श्मशान या तपोस्थल—में की जाती है। अमावस्या तिथि को विशेष माना गया है क्योंकि यह स्वयं प्रलय का प्रतीक है। साधक इस दिन उड़द, गुड़ तथा नमकीन व्यंजनों जैसे समोसे, पकोड़े आदि का भोग लगाते हैं।

ध्यान रहे, देवी को भोग लगाने में भक्ति और आंतरिक पवित्रता ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है – न कि दिखावा या शुद्ध भौतिकता।

धूमावती स्तोत्र और साधना विधि

इस शुभ अवसर पर आचार्य गोस्वामी ने एक दिव्य स्तोत्र प्रस्तुत किया है, जिसका नियमित पाठ शत्रु नाश, ग्रह दोष निवारण, दरिद्रता मुक्ति, तांत्रिक बाधा नाश तथा ज्ञान-विज्ञान की सिद्धि में सहायक होता है:

> ।। भद्रकाली महाकाली डमरूवाद्यकारिणी ।
स्फारितनयना चैव टकटंकितहासिनी।
धूमावती जगत्कर्ती शूर्पहस्ता तथैवच ।
अष्टनामात्मकं स्तोत्रं यः पठेद् भक्तिसंयुक्तः
तस्य सर्वार्थसिद्धिः स्यात् सत्यं सत्यं हि पार्वति ॥

साधक इस स्तोत्र का 108 बार पाठ कर माता से यह प्रार्थना करें कि इसमें वर्णित हर तत्व उनके जीवन में सत्य सिद्ध हो। कांसे के पात्र में नारियल जल और जायफल अर्पित करें तथा पूजन सामग्री को बहते जल में प्रवाहित करें।

भय नहीं, भक्ति करें – तभी दर्शन होगा दिव्यता का

माता धूमावती का स्वरूप विकराल अवश्य है, परंतु वह स्वरूप माया के भ्रम को तोड़ने वाला है। जब साधक इस मायाजाल को पार करता है, तभी उसे गुप्त ब्रह्म विद्या के दर्शन होते हैं।आचार्य गोस्वामी कहते हैं, “धूमावती कोई तुच्छ या भयावह देवी नहीं हैं, बल्कि वह सर्वोच्च शक्ति का प्रतीक हैं। यदि वे कृपा करें तो षट्कर्म से लेकर ब्रह्मसिद्धि तक किसी भी कार्य में सफलता निश्चित है।”

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