Thursday, October 16, 2025
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सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे

– राम मंदिर आंदोलन में हर तरफ गूंज रहे थे मंदिर निर्माण को लेकर नारे
– अक्तूबर 1992 में यूपी में हो गया था इमरजैंसी जैसा माहौल
– तत्कालीन सपा सरकार ने राम भक्तों पर लगा दिया था पुलिस का पहरा


शारदा न्यूज रिपोर्टर

मेरठ। राम मंदिर आंदोलन यूं तो विश्व हिंदू परिषद ने 1980 में शुरू किया था। लेकिन इसे धार दी गई 1989 में। इसके बाद तो माहौल लगातार गरम होता गया और स्थिति ये हो गई कि 1992 में यूपी के भीतर इमरजैंसी जैसा माहौल बन गया। हर गली और चौराहों पर राम मंदिर के पक्ष में स्लोगन लिखी दीवारे नजर आने लगी, तो आंदोलन को लेकर बैठकों और जनसभाओं का दौर भी शुरू हो चुका था। ऐसे में शुरू हुआ जेल भरो आंदोलन और उसके बाद जब विवादित स्थल को गिराने का समय आया तो प्रदेश में जमकर गिरफ्तारियां भी हुई।

 

 

उसी दौर में मेरठ शहर और पूरे जिले में राम मंदिर को लेकर आंदोलन जोर पकड़ रहा था। बात थी वर्ष 1992 की पुलिस ने गिरफ्तारियां शुरू कर दी। विहिप नेतृत्व का संदेश आया कि जो आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, वो जेल जाने से बचें और आंदोलन को और ज्यादा धार दें। ऐसे में सभी भूमिगत हो गए।

परीक्षितगढ़ कसबा निवासी पूर्व प्रधानाचार्य पदम सैन मित्तल बताते हैं कि वह उस वक्त विहिप के खंड प्रमुख थे। जिस कारण वह भी मेरठ में भूमिगत हो गए। लेकिन आंदोलन चलता रहा। तभी किसी मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि उनका बेटा इस आंदोलन की अगुवाई कर रहा है, यदि उसे गिरफ्तार कर लिया जाए, तो बाकी के लोग भी गिरफ्तार हो जाएंगे।

 

 

इसकी सूचना मिलने पर उन्होंने विहिप के वरिष्ठ नेताओं से बात की। जिस पर तय हुआ कि वह जाकर स्वयं गिरफ्तारी दें और इसके बाद बाकी के कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तारी देने के लिए कहें। इसके बाद वह परीक्षितगढ़ पहुंचेऔर सवेरे ही बैठक बुलाकर तय हुआ कि आज गिरफ्तारी दी जाएगी। उनके साथ सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन तय हुआ कि हर दिन गिरफ्तारी दी जाएगी। इसके लिए 20-20 लोगों के जत्थे बना दिए गए।

 

 

राम मंदिर आंदोलन से जुड़े शिक्षक संजय शर्मा ने बताया कि जिस पर पदम सैन मित्तल ने गिरफ्तारी दी, उस दिन कसबे का पूरा बाजार बंद हो गया और हजारों की संख्या में कसबे और क्षेत्र के लोग इकट्ठा होकर नारेबाजी करते हुए थाने पर पहुंच गए। हालात ऐसे हो गए कि पुलिस जो पहले दिन तक कार्यकर्ताओं को ढूंढती फिर रही थी, वह बैकफुट पर आ गई और सारी व्यवस्था हमारे हाथों में दे दी। जिसके बाद प्रधानाचार्य पदम सैन मित्तल के नेतृत्व में 20 कार्यकर्ता जेल भेज दिए गए।

जानसठ के इंटर कालेज में बनाई गई अस्थाई जेल

विहिप के आह्वान पर कार्यकर्ताओं का जनपद से इतना बड़ा हुजुम गिरफ्तारी के लिए उमड़ा कि सरकारी जेल छोटी पड़ गई। ऐसे में अस्थाई जेल बनानी पड़ी। मेरठ से गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को मुजफ्फरनगर की अस्थाई जेलों में रखा गया। इनमें एक जानसठ के इंटर कालेज में थी।

कालेज में मचाया कार्यकर्ताओं उत्पात

एक दिन खाने को लेकर हंगामा हो गया। हंगामें के दौरान कालेज के चारो तरफ बनी गुंबदों को विहिप कार्यकर्ताओं ने ध्वस्त कर दिया और पूरे कालेज परिसर की छत पर भगवा ध्वज फहरा दिए। जिसके बाद हंगामा इस कदर बढ़ा कि प्रशासन के हाथ पांव फूल गए। क्योंकि जहां अस्थाई जेल बनाई गई थी, उसके आसपास दूसरे संप्रदाय की आबादी निवास करती थी।

ऐसे में सभी को वहां से तत्काल मुजफ्फरनगर में दूसरी अस्थाई जेल बनाकर वहां शिफ्ट कर दिया गया। लेकिन अगले दिन वहां भी भोजन को लेकर हंगामा हो गया। जिसमें बाद तय हुआ कि सभी को रिहा कर दिया जाए।

बच्चा-बच्चा राम का….

इस आंदोलन की सबसे खास बात ये थी कि यहां आयु, जाति और वर्ग का कोई बंधन नजर नहीं आ रहा था। छात्र से लेकर शिक्षक तक, मजदूर से लेकर किसान तक, व्यापारी से लेकर उद्यमी तक सभी एक होकर आंदोलन में शामिल थे और जेल से लेकर जनसभाओं और बैठकों में हिस्सेदारी कर रहे थे।

गर्व है रामंदिर बन रहा है, लेकिन निमंत्रण नहीं मिला

पूर्व प्रधानाचार्य पदम सैन मित्तल और उनके साथी कार्यकर्ताओं का कहना है कि राम मंदिर निर्माण से उन्हें गर्व की अनुभूति हो रही है। जिस काज के लिए आंदोलन किया, वह आज पूरा हो रहा है। लेकिन मलाल है कि उनमें से किसी के पास भी अभी तक निमंत्रण नहीं आया है।

भाजपा को भी मिली संजीवनी

जनपद में भाजपा का कोई अस्तित्व नहीं था। लेकिन 1989 में राम मंदिर आंदोलन शुरू होते ही भाजपा को संजीवनी मिलना शुरू हो गई। पहली बार भाजपा ने मेरठ कैंट और मेरठ शहर सीट पर जीत हासिल की। लेकिन अभी देहात का सफर तय करना बाकी था। छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा ध्वस्त होने और कारसेवकों पर गोलियां बरसाने और लाठी चार्ज के बाद उत्तर प्रदेश का माहौल पूरी तरह बदल गया। इसके बाद किठौर क्षेत्र में जो राम मंदिर आंदोलन की मशाल जली थी, उसने ऐसा बदलाव लाया कि 1993 पहली बार ये सीट भाजपा के पाले में गई। इसके बाद से तो माहौल पूरी तरह बदल गया और भाजपा ने देहात की सीटों पर भी अपनी पकड़ मजबूत बना ली।

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