– भाजपा के मोहरों को बसपा और आईएनडीआईए दोनों मिलकर ही दे सकते हैं मात ! – बसपा और आईएनडीआईए दोनों की मजबूरी है साथ आना – सपा की हठधर्मिता से बिगड़ सकता है मामला, कांग्रेस दूसरी जगह सीटे देकर बसपा को कर सकती है संतुष्ट
अनुज मित्तल (समाचार संपादक)
मेरठ। लोकसभा चुनाव की बिसात पूरी तरह बिछ चुकी है। भाजपा के खिलाफ तमाम पार्टियां एकजुट होकर मैदान में है, इंतजार सिर्फ बसपा का है। बसपा सुप्रीमो मायावती हालांकि कुछ दिन पहले इशारा भी कर चुकी हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी की हठधर्मिता इस खेल को बिगाड़ रही है। यही कारण है कि आंकड़ो में भाजपा अभी तक इंडिया गठबंधन पर हावी नजर आ रही है। लेकिन यह भी सच है कि इंडिया को यदि दिल्ली फतह करना है तो हाथी की सवारी करना उसकी मजबूरी होगा।
दिल्ली फतह का दरवाजा यूपी से खुलता है। यही कारण है कि वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा का चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को यूपी की कमान सौंपी गई थी। जिसका परिणाम ये हुआ कि तब से लेकर अब तक यूपी पर भाजपा पूरी तरह काबिज है। इस दौरान दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव में भाजपा यहां से पूर्ण बहुमत लेकर आयी।
लेकिन इस बार मामला कुछ फंसा हुआ है। हालांकि जब तक इंडिया गठबंधन से बसपा की दूरी है, तब तक भाजपा चैन की बंसी बजा रही है। लेकिन अगर बसपा इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाती है, तो भाजपा की नींद उड़ना तय है। ऐसे में साफ है कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह के तरकश के सारे तीर हाथी के सामने तब फेल होते नजर आ सकते हैं।
राम मंदिर को लेकर चल रहे प्रचार प्रसार से यह तय है कि भाजपा इस चुनाव में पूरी तरह हिंदू कार्ड खेलने का मन बना चुकी है। हालांकि इससे वह हिंदु वोटों का कितना धु्रवीकरण करा पाएगी, यह कहना मुश्किल है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट जहां भाजपा से अभी भी बड़ी संख्या में छिटका हुआ ही नजर आ रहा है, तो दलित वोटों को हिंदुत्व की मुख्य धारा से जोड़ना भी अभी दूर की कोड़ी ही लग रहा है।
मायावती पर है इंडिया गठबंधन की नजर
इंडिया गठबंधन के अधिकांश दल ये समझ चुके हैं कि आंकड़े अभी भी उनके पक्ष में नहीं है। क्योंकि बसपा का वोट बैंक साथ आए बगैर वह भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में नही है। लेकिन उनके सामने सपा सबसे बड़ी दीवार बनी हुई है। क्योंकि सपा उत्तर प्रदेश में अधिक से अधिक सीटें अपने पास रखना चाहती है। अप्रत्यक्ष रूप से समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता गठबंधन को चेतावनी भी दे चुके हैं कि यदि यूपी में उनके अनुसार सीटों का बंटवारा नहीं होगा तो वह अलग जा सकते हैं।
बसपा को है अलग रहने में नुकसान
मायवती भी यह जानती हैं कि यह चुनाव उनके भविष्य को तय करेगा। क्योंकि लगातार उनका वोट बैंक कम होता जा रहा है। ऐसे में यदि वह अकेले चुनाव मैदान में उतरती हैं तो उनका वोट बैंक जो अब करीब 13 प्रतिशत है, वह गिर कर छह-सात प्रतिशत पर आ सकता है। जिसके चलते बसपा की राजनीति भविष्य में पूरी तरह खत्म हो जाएगी।
कांग्रेस करा सकती है फैसला
अब सबकी नजर कांग्रेस पर है। क्योंकि बसपा को गठबंधन में लाने का फार्मूला उसी के पास है। यदि सपा बसपा को यूपी में कम सीट देती है, तो कांग्रेस बसपा को राजस्थान और मध्यप्रदेश में कुछ सीटे देकर उसको संतुष्ट कर सकती है।